“विश्व संगीत दिवस-2024”
राजस्थान में लुप्त हो रहे संगीत को पुनर्जीवित करने के प्रयास किये जाये : मुकेश माधवानी
उदयपुर, 20 जून। एम स्क्वायर प्रोडक्शन के सीईओ मुकेश माधवानी ने बताया की विश्व संगीत दिवस प्रत्येक वर्ष 21-जून को दुनिया भर में मनाया जाता है और इसका उद्देश्य संगीत की स्वरवभौमिक भाषा के उत्सव के माध्यम से दुनियाभर के लोगों को एकजुट करना है।
विश्व संगीत दिवस को अशोका पैलेस पर आज शाम 4 बजे मनाया जायेगा ।
संगीत एक बहुत ही प्रभावशाली माध्यम है, जो एकता, सांस्कृतिक आदान प्रदान, संवेदनशीलता, शांति, मनोरंजन इत्यादि का महत्वपूर्ण माध्यम है जो सदियों से एवं आज के इस भौतिक युग में मानसिक तनाव को कम करता है एवं मनुष्य में रचनात्मक सोच को बढ़ावा देता है एवं शांति एवं सौहार्द का वातावरण उत्पन्न करता है।
भारत अनेकता में एकता का एक अनुकरणीय उदाहरण है एवं इसमें संगीत का एक गौरवमयी इतिहास है एवं देश के विभिन्न प्रांतों में विविध प्रकार के संगीत का वर्षों से संगम है जो गायन, अनूठे वाद्य यंत्र एवं नृत्य की विभिन्न शैलियों के माध्यम से त्योहारों, मनोरंजन एवं भक्ति के कार्यक्रमों इत्यादि अवसरों पर प्रस्तुत किया जाता है एवं देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
राजस्थान में संगीत की एक समृद्ध विरासत है एवं राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में जैसे मारवाड़, पश्चिम राजस्थान, शेखावाटी, मेवाड़, ढूंढाड़ इत्यादि क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की नृत्य एवं गायन शैलियां प्रचलित हैं एवं विभिन्न प्रकार के अनूठे वाद्य यंत्रों के साथ प्रस्तुत की जाती है तथा कई शैलियों की विश्व भर में अनूठी पहचान है।
घूमर, भवाई, कालबेलिया, चरी, डांडिया, कच्छी घोड़ी, तेरह ताल, गैर, कठपुतली, पाबूजी की फंच, मांड, पनिहारी इत्यादि लोक नृत्य राज्य के विभिन्न स्थानों पर प्रचलित हैं तथा लोकप्रिय हैं।
राज्य में विभिन्न अनूठे प्रकार के वाद्य यंत्रों का प्रचलन है तथा इनको बजाने एवं गाने वाले कलाकार विभिन्न क्षेत्रों से आते हैं।
कमायचा, सिंधी सारंगी, नाद, मोरचंग, रावण हत्था, एकतारा, अलगोजा, तर्पि, पूंगी, जलतार इत्यादि अनूठे वाद्य यंत्र राजस्थान की पहचान है।
विगत वर्षों में कई क्षेत्रों में प्रचलित गायन एवं नृत्य शैली तथा वाद्ययंत्रों का प्रचलन काफी कम हुआ है एवं कई शैलियां एवं वाद्य यंत्र विलुप्तता के कगार पर हैं। इन वाद्य यंत्रों एवं शैलियों का बॉलीवुड एवं अन्य आधुनिक संगीत की शैलियों में बखूबी उपयोग हो सकता है एवं इसकी प्रसिद्धि हो सकती है यदि इन विलुप्त होती संगीत प्रतिभाओं एवं वाद्य यंत्रों का उचित प्रोत्साहन एवं सम्बल मिले।
इस प्रोग्राम में जैसलमेर मारवाड़ से संगीत से जुड़े लोक कलाकार श्री बक्श खान जी आयेंगे जो इस मुहीम को चलाने में अपने संस्थान गुनसर फोक म्यूजिक इंस्टिट्यूट, जैसलमेर के माध्यम से प्रयास कर रहे हैं।
इस भव्य कार्यक्रम में कमायचा एवं मटका पर श्री साचु खान दाव, सिंधी सारंगी श्री भवरू खान लंगा, खरताल-मोरचंग पर श्री फिरोज खान, ढोलक-ढोल-भपंग पर श्री खेता खान, गायन श्री असीन रोशन लंगा एवं कालबेलिया पर सुश्री किरण एवं मीरा अपनी शानदार प्रस्तुति देंगे।
पीएचडी चेंबर के निर्देशक आर के गुप्ता ने बताया की पीएचडी चैम्बर आने वाले समय में अपने विभिन्न कार्यक्रमों एवं नवाचारों के माध्यम से राज्य में विलुप्तता के कगार पर कड़ी संगीत की प्रतिभाओं, शैलियों एवं वाद्य यंत्रों के पुनर्जीवन के लिए आगे भी विभिन्न संगठनों एवं सरकार के साथ मिलकर कार्य करता रहेगा।