हर प्लानिंग में रखें बाड़ी, बावड़ी का प्रावधान : मेहता
इंस्टीट्यूशन ऑफ टाउन प्लानर्स इंडिया का आयोजन
पर्यावरण मूलक नगरीय आयोजना पर हुई सेमिनार
सीमेंट से कार्बन उत्सर्जन , चूना करता है कार्बन अवशोषण, तापक्रम अनुकूलन
उदयपुर. इंस्टीट्यूशन ऑफ टाउन प्लानर्स इंडिया, आई टी पी आई की राजस्थान इकाई द्वारा पर्यावरण दिवस कार्यक्रम श्रंखला के तहत “पर्यावरण मूलक नगरीय आयोजना” विषयक सेमिनार का आयोजन हुआ
इंस्टिट्यूशन सभागार में उदयपुर स्कंध की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राज्य के पूर्व अतिरिक्त मुख्य नगर नियोजक व आई टी पी आई रीजनल कमिटी सदस्य सतीश श्रीमाली ने राज्य में मास्टर प्लान निर्माण प्रक्रिया में पर्यावरण मूलक तत्वों व प्रावधानों के समावेश पर प्रकाश डाला। श्रीमाली ने कहा कि मास्टर प्लान एक क़ानूनी दस्तावेज है जिसके अनुरूप ही शहरों, कस्बों का विकास होना चाहिए।
मुख्य वक्ता विद्या भवन पोलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने कहा कि बढ़ते तापक्रम, बाढ़, सूखा , मरुस्थलीकरण जैसी आपदाओं को देखते हुए नगरीय आयोजना , टाउन प्लानिंग के सिद्धांतों, दृष्टिकोण को नए रूप में परिभाषित करना होगा। मेहता ने कहा कि नगरीय आयोजना संसाधनों के अधिकतम खपत व दोहन के स्थान पर अधिकतम बचत एवं संवर्धन पर केन्द्रित रहनी चाहिए।
मेहता ने कहा कि नगरीय आयोजना में बाड़ी तथा बावड़ी का प्रावधान जरूरी है। लेंड प्लान को स्वीकृत करने में न्यूनतम तीस प्रतिशत पेड़ आच्छादित ग्रीन कवर की शर्त होनी चाहिए।विविध प्रजातियों के पेड़ों से युक्त एक उपवन( बाड़ी) का प्रावधान होना चाहिए। प्रति एक हजार वर्गफीट भूमि पर न्यूनतम एक बड़ा पेड़ तापक्रम अनुकूलन के लिए होना चाहिए। गहरे टयूबवेल के बजाय बावड़ियाँ बनाने का प्रावधान रखा जाना चाहिए । झीलों, नदियों, पहाड़ों को इको सेंसिटिव जोन घोषित कर इन्हें पक्के निर्माणों से बचाया जाना चाहिए।
मेहता ने कहा कि निर्माण कार्यों में चूने का प्रयोग लौटाना होगा। सीमेंट युक्त एक वर्ग फीट निर्माण दो किलो कार्बन उत्सर्जन का जिम्मेदार है जबकि चूना कार्बन का अवशोषण कर वातावरण को ठीक करता है। तापक्रम अनुकूलन भी करता है।
पर्यावरणविद महेश शर्मा ने कहा कि झीलों तथा नदियों में सीवरेज के प्रवेश को रोकना होगा तथा आम जन को समुचित मात्रा में शुद्ध जल मिले, इसके प्रावधान सुनिश्चित करने होंगे । वहीं, शहरों में जैव विविधता बनी रहे , यह प्रयास करने होंगे ।
इकलाई साउथ एशिया के जलवायु प्रबंधन विशेषज्ञ भूपेंद्र सालोदिया ने कहा कि हर तरफ पक्का निर्माण होने से शहर में जमीन सतह का तापक्रम निरंतर बढ़ रहा है , यह एक गंभीर पर्यावरणीय संकट है । इसके लिए पक्की सतह के बजाय वनस्पति युक्त जमीन सतह बढ़ाना जरूरी है।
संयोजन करते हुए उदयपुर के वरिष्ठ नगर नियोजक अरविन्द सिंह कानावत ने कहा कि नगरों में पर्यावरणीय समृद्धि तथा तापक्रम अनुकूलता के लिए नगर नियोजन विभाग विशेषज्ञों व आम जन की सलाह लेकर कार्य कर रहा है।
सेमिनार में इंटक उदयपुर स्कंध के सचिव गौरव सिंघवी, उप नगर नियोजक वीरेंद्र सिंह परिहार , निकिता शर्मा, महेंद्र सिंह परिहार, दिनेश उपाध्याय सहित निलेश सोलंकी , राज बहादुर , पुष्कर सेन ने भी विचार रखे।