उदयपुर। सुरजपोल बाहर स्थित दादाबाड़ी में श्री जैन श्वेताम्बर वासुपूज्य महाराज मन्दिर का ट्रस्ट द्वारा आयोजित किये जा रहे चातर्मास में समता मूर्ति साध्वी जयप्रभा की सुशिष्या साध्वी डॉ. संयम ज्योति ने कहा कि पर्युषण पर्व शांत रस की धारा लेकर आया है जिन्होंने भी इस शांत रस की धारा में अवगाहन किया उसने अपनी आत्मा को परमात्मा की भूमिका पर स्थापित कर लिया।
साध्वी ने कहा कि इस पर्व का विशेष रूप से तप से संबंध है। इस पर्व का ऐसा अनुपम प्रभाव है कि जहां अन्य पर्वों में बच्चे में खाने पीने, मौज-शोक करने की होड़ लगती है वही इस पर्व के आने पर उपवास, तप करने की होड़ लगती है।
साध्वी ने कहा कि कई लोगों का स्वास्थ्य प्रतिकूल रहने पर वे तप नही करने का दुःख करते हैं। उनसे अन्न का त्याग नही हो तो कोई बात नहीं, उनको आठ दिन पर्यन्त क्रोध का त्याग कर देना चाहिए। क्रोध का त्याग सबसे बड़ा तप है।
उन्होंने कहा कि तप करने वालो को सबसे पहले इंद्रियों के विषय का त्याग करना चाहिए। तत्पश्चात् कषाय, क्रोध, मान, माया, मोह, लोभ का त्याग करना चाहिए। आहार का त्याग तो तीसरे नंबर पर होता है। कदाचित दो त्याग हो जाये और तीसरा त्याग नही हो तो भी तप कहलाता है जबकि दो त्याग नही हो और तीसरा त्याग हो तो वह तप नहीं ताप कहलाता है, देह दंड कहलाता है।
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