उदयपुर। सुरजपोल बाहर स्थित दादाबाड़ी में श्री जैन श्वेताम्बर वासुपूज्य महाराज मन्दिर का ट्रस्ट द्वारा आयोजित किये जा रहे चातर्मास में समता मूर्ति साध्वी जयप्रभा की सुशिष्या साध्वी डॉ. संयम ज्योति ने कहा कि पर्व हमें अतीत की याद दिलाते है। हमारा अतीत उज्जवल रहा परंतु वर्तमान कैसा है, यह भी विचारणीय, चिन्तनीय, मनननीय और मंथननीय है। अतीत के आलोक में वर्तमान को देखना आवश्यक ही नहीं अति आवश्यक है वस्तु। अतीत का स्वर्णीम पृष्ठ नवीन पृष्ठ लिखने का संदेश दे रहा है। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व संदेश दे रहा है अतीत उज्जवल रहा परंतु अतीत के अवलोकन से वर्तमान को अति उज्जवल बना डालो।
साध्वी ने कहा कि पर्युषण पर्व अष्ट दिवसीय आत्मशुद्धि का आध्यात्मिक शिविर है। यह वामन रूप में आकर विराट संदेश दे जाते है। रोजमर्रा की जिन्दगी में आठों पहर सजग और जीवन्त रहने की प्रेरणा दे जाते है।
उन्होंने कहा कि पर्युषण पर्व अन्तर्मन को रोशन करने का पर्व है। यह पर्व भारत की आत्मा है। सारे पर्व पर्युषण में आकर समा जाते है क्योंकि सारे पर्व बाहर की दुनिया को रोशन करते हैं। पर यह हमारे अन्तर्मन को रोशनी से भरने के लिए आता है। इसलिए हमे अपने मन के दरवाजे खिडकियां और रोशनदान खोल देने चाहिए जिससे रोशनी अंदर आ सके।
साध्वी संयम साक्षी ने कहा कि यह महामंगलमय पर्व कहलाता है क्योंकि इसकी स्थापना किसी महापुरुष की जीवन गाथा के कारण अथवा किसी विशेष घटना के कारण नही हुई। इसकी स्थापना तप, त्याग, संयम के उद्देश्य से हुई है। चिरकाल से इसका एक अर्थ रहा है आत्म शुद्धि।
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