उदयपुर। वे लोग तकदीर वाले होते हैं जिनके घर में बूढ़े-बुजुर्गों का साया होता है। जिस दिन वे चले जाते हैं घर अनाथ हो जाता है। आपसे धर्म-कर्म हो तो ठीक अन्यथा कोई दिक्कत नहीं, पर माता-पिता की सेवा में कभी कोई कमी मत छोडना। किसी क्लब, सोश्यल गु्रप के सदस्य बनकर शहर की सेवा करना सरल है, पर अपने घर में रहने वाले बूढ़े-बुजुर्गों की सेवा करना मुश्किल है। संस्थाओं के सदस्य बनने की बजाय पहले घर के सदस्य बनें और घरवालों की सेवा संभालें। ये विचार साध्वी डॉ संयमलता ने आज मंगलवार को शहर के सेक्टर चार स्थित “सुधर्मा दरबार’ में आयोजित धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।
डॉ.संयमलता ने आगे कहा कि जब भगवान को प्रणाम करवाना होता है तो वह मंदिर में जाकर बैठता है, पर जब उसे प्रणाम का परिणाम देना होता है तो हमारे घर में माता-पिता के रूप में अवतार लिया करता है। इसलिए मंदिर बाद में जाएँ, पहले अपने माता-पिता को संभालें। याद रखें, भगवान की सेवा से माता-पिता मिले या न मिले, पर माता-पिता की सेवा से भगवान जरूर मिलते हैं।
साध्वी सौरभप्रज्ञा ने कहा कि प्रतिक्रमण का अर्थ है अपने भीतर लौट आना, स्वयं की निंदा करना, अपने दोषों को देखना। हमें अतिक्रमण से प्रतिक्रमण में आना चाहिए।प्रतिक्रमण केवल परलोक के लिए ही नहीं इस लोक के लिए भी हितकारी है।
नाग पंचमी पर होगा विशेष प्रवचन-चातुर्मास संयोजक ललित लोढा वे जानकारी देते हुए बताया कि साध्वी डाक्टर संयमलता आगामी 9 अगस्त को नाग पंचमी के अवसर पर “जैन शास्त्रों में वर्णित नागों का महत्त्व” विषय पर अपना उद्बोधन देंगी।
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