उदयपुर। समता मूर्ति जयप्रभाश्री म.सा. की सुशिष्या साध्वी डॉ. संयम ज्योति ने कहा कि माया मृषावाद पाप झूठ का जाल है। माया का अर्थ कपट मृषण का अर्थ झूठ और वाद का अर्थ बोलना अर्थात कपट सहित झूठ बोलना।
साध्वी ने कहा कि क्रोध, मान और लोभ तो बाहर से प्रकट हो जाते है परंतु कपट तो गुप्त रहता है। इसलिए शास्त्र में माया को नागिन की उपमा दी गई है। सर्प डसने पर तो व्यक्ति के बचने की संभावना रहती है परंतु नागिन के डसने पर बचने की गुंजाइश नही रहती।
साध्वी ने कहा कपट का साम्राज्य सर्वत्र फैला हुआ है। कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नही है। कपटी व्यक्ति सर्वत्र छल करता है। घर में घरवालों को, समाज में समाज वालों को, मंदिर में भक्तों को, भगवान के स्थानक में संतों को और दुकान में ग्राहकों को ठगता है। दिल में कपट रखकर बहुत मीठा बोलता है। लोग एक बार उसकी मीठी वाणी में फंस जाते है। उसकी साख जम जाती है और दूसरी बार लोग समझ जाते है मधुर वाणी दगेबाज की निशानी और उसकी सारख बहुत जल्दी राख में बदल जाती है। उसको मुंह की खानी पड़ती है। उसकी कुल्हाडी उसके ही पैर पर प्रहार कर देती है
साध्वी ने कहा कि जीभ और जीवन में 36 का आँकडा रखो। बाहर और अन्दर में अन्तर मत रखो। सरल बनो, भीतर बाहर एक बनो तन उजाला मन सांवला बगुला कपटी भेरव यासु तो कागा भला भीतर बाहर एक। साध्वी ने कहा कि काठ की हांडी केवल एक बार ही चुल्हे पर चढ़ती है। कपटी व्यक्ति एक बार ही विश्वास घात कर सकता है परंतु हमेशा के लिए विश्वास खो देता है।
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