उदयपुर 03 अगस्त। मनुष्यों में ही नहीं,अपितु नवजात पशुओं में भी उनकी माता का दूध पिलाना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मादा पशु के ब्याहने के पश्चात पशु के कोलोस्ट्रम स्त्रावण 5-6 दिन तक होता है। नवजात वत्स की मृत्यु दर को नियंत्रण करने के लिए यह चमत्कारी औषधि से कम नहीं है।
यह विचार पशुपालन प्रशिक्षण संस्थान के डॉ. सुरेंद्र छंगाणी ने संस्थान में आयोजित नवजात पशु की मृत्यु दर को नियंत्रण करने के विषयक संगोष्ठी में रखें। डॉ.छंगाणी ने कहा कि व्याप्त आम भ्रांतियां के कारण इस उपयोगी गुणकारी पोषक तत्व से पशुओं के नवजात वत्सों को वंचित रखा जाता है। अधिकांश पशुपालकों का मानना है की ये कोलोस्ट्रम नवजात के पेट में जाकर जम जाता है और हानि करता है, जबकि वास्तविकता यह है कि यह कोलोस्ट्रम नवजात शिशु के पेट के अंदर जमे प्रथम मल को निकालने में एक प्राकृतिक परगेटिव का कार्य करता है। संकर नस्ल के नवजात में यह देखा गया है कि अगर उन्हें यह “कोलोस्ट्रम” आहार उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो उनके अल्प समय में ही मृत्यु होने की संभावना अत्यधिक रहती है। नवजात की शारिरीक वृद्धि के लिए माँ का दूध नियत समय तक पिलाया जाना नितान्त आवश्यक है।
डॉ. सुरेश शर्मा ने कार्यक्रम संचालन करते हुए कहा कि नवजात को उसके शरीर भार का 10 हिस्से के तुल्य कोलोस्ट्रम उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इस अवसर पर डॉ. पदमा मील ने भी अपने विचार रखें ।