उदयपुर। सेक्टर 4 श्री संघ में विराजित श्रमण संघीय जैन दिवाकरिया महासाध्वी डॉ श्री संयमलताजी म. सा.,डॉ श्री अमितप्रज्ञाजी म. सा.,श्री कमलप्रज्ञाजी म. सा.,श्री सौरभप्रज्ञाजी म. सा. आदि ठाणा 4 के सानिध्य में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए महासती संयमलता ने अहिंसा के बारे में बताते हुए कहा सभी जीवन जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। सभी को अपनी जिंदगी के प्रति प्यार, आदर व आकांक्षा है। सभी अपनी सुख-सुविधा के लिए सतत प्रयत्नशील है, अपने अस्तित्व के लिए सभी संघर्ष कर रहे हैं। संसार भर के प्राणियों को अपनी आत्मा के समान समझो, यही अहिंसा की श्रेष्ठ व्याख्या है। अहिंसा यानी जियो और जीने दो।
साध्वी ने कहा कि जीवांे का स्वभाव परस्पर एक दूसरे का उपकारक होना है। हिंसा से कभी सच्ची सुख शांति प्राप्त नहीं होती। किसी प्राणी को शारीरिक, मानसिक कष्ट ना दें,कटु वचन ना कहे, दूसरों के साथ धोखेबाजी, बेईमानी एवं विश्वासघात ना करें, दूसरों का अपमान आदि न करें दूसरों से अच्छा व्यवहार करें। यही हिंसा से बचने और अहिंसा को अनिवार्य रूप से जीवन में लाने का सूत्र है। महासती कमलप्रज्ञा ने कहा जैन धर्म में कर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। अपने सत्कर्म से व्यक्ति राम कृष्ण महावीर बन सकता है तो अपने दुष्कर्म से व्यक्ति रावण कंस गौशालक बन सकता है। हमें जन्मजात धार्मिक नहीं कर्म जात धार्मिक बनना है। जैन धर्म भाव पर टिका है। जैसे भाव होंगे वैसे ही भव होंगे। महिला शिविर का आयोजन हुआ जिसमें 125 महिलाओं ने भाग लिया।