वासुपूज्य मन्दिर में साध्वी संयम ज्योति श्रीजी के व्याख्यान
उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर वासुपूज्य महाराज मंदिर में आयोजित चातुर्मास में प्रवचन में साध्वी डॉ. संयम ज्योति श्रीजी ने कहा कि ढाई लाख मनुष्य प्रतिदिन पैदा होते हैं लेकिन वाकई मनुष्य कितने हैं,इसका बाद में पता चलता है। वे वास्तविक मनुष्य ही समाज को सही दिश में ले जाने का कार्य करते है।
उन्होंने कहा कि आकृति और प्रकृति दोनों से मनुष्य बनें है। जीवों में शिरोमणि मानव है। आज मानव के विचार और व्यवहार में जो परिवर्तन दिख रहा है उससे लगता है कि उसकी अनंत संभावनाओं पर प्रश्न लग गया है। स्वार्थ की गंध सिर्फ मानव में आती है। परिवर्तन आया है। पशु भी अपनी उपमा मानव को देना पसन्द नही करते। मच्छर और मानव में मच्छर ज्यादा अच्छा है। मच्छर मच्छर को नही काटता!
उन्होंने कहा कि लैंड की वैल्यू लोकेशन के हिसाब से होती है। 84 लाख जीव योनियों में सर्वश्रेष्ठ, सर्वाेत्तम मनुष्य योनि है। जिन शासन में उच्च कुल में जन्म लेना है। जिस कंचन और कामिनी के पीछे सब दौड़ रहे हैं वो वहां अपार है। देवता भी चाहते हैं कि उच्च कुल मिल जाये। श्रावक न बन पाएं तो श्रावक के नौकर बन जाएं। देवों को भी मनुष्य योनि के लिए उच्च प्रयास करना पड़ेगा। मनुष्य जन्म सस्ते में नहीं मिलता है। इसकी वैल्यू हमने कौड़ियों की कर दी है। करोड़ों पुण्य खर्च किये तब हमें यह मिला। यह अंतिम जन्म है। आपको पर्याप्त सामग्री प्राप्त है। पंचम गति मोक्ष को प्राप्त कर लें। इसका सदुपयोग करें।
मानवता मानव का और दानवता दानव का स्वभाव है।
साध्वी संयम गुणा श्रीजी ने सन्त ज्ञानदेव का उदाहरण देते हुए कहा कि मानवता क्या होती है? उन्होंने सुंदर गीत की प्रस्तुति भी दी।